डॉ. हनुमत् शरण पाठक :- शाकद्वीपीय रत्न
Dr. Hanumat Sharan Pathak - The Luminary of Shakadwip

डॉ. हनुमान शरण पाठक / हनुमत् शरण पाठक (Dr. Hanuman Sharan Pathak / Hanumat Shara Pathak)
डा. हनुमान शरण पाठक, जिनकी तीक्ष्ण मेधा और धार्मिक आस्था ने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई, का जन्म श्रावण कृष्ण अष्टमी शाकद्वीपीय मग ब्राह्मण(मिहीर गोत्र) को मामाग्राम दशरंगपुर में हुआ था। बचपन में ही, उनकी बुद्धिमत्ता और ज्ञान के प्रति समर्पण ने उन्हें एक असाधारण छात्र बना दिया। उन्होंने अपने प्रारंभिक शिक्षा के वर्ष मोहगांव में बिताए, जहां उन्होंने कक्षा तृतीय तक की पढ़ाई की।
इसके बाद, वे अपने मामाग्राम में गए और वहाँ चार वर्षों तक अध्ययन किया। इस दौरान, उनकी संस्कृत भाषा के प्रति गहरी रुचि उत्पन्न हुई। दशरंगपुर से, वे संस्कृत अध्ययन के लिए ग्राम बोड़तरा में श्री चन्द्रदत्त शास्त्री जी के पास गए। उनकी तीव्र शिक्षा की गति ने शास्त्री जी को प्रभावित किया और उन्होंने हनुमान जी को धमतरी में श्रीमान् हनुमान प्रसाद ब्रह्मचारी जी के पास भेजा।
धमतरी में भी, डॉ. पाठक ने तीन वर्षों की अध्ययन सामग्री को मात्र एक वर्ष में पूरा कर लिया। भगवान् की असीम अनुकम्पा के फलस्वरूप डॉ. पाठक ने यतिचक्र-चुडामणी-अभिनव शङ्कर धर्मसम्राट स्वामी श्रीहरिहरानन्द सरस्वती जी महाभाग(करपात्र महास्वामी) से गुरु दीक्षा ली ।
इसके बाद, वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में वैदिक व्याकरण और पाणिनीय व्याकरण में शास्त्री और आचार्य की उपाधि प्राप्त करने के लिए वाराणसी चले गए। उन्होंने यहाँ पर उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और अपनी ज्ञान पिपासा को और बढ़ाया।
अपने परिवार की इच्छाओं को पूरा करने के लिए, उन्होंने विवाह किया। विवाहोपरांत, उन्होंने फिर से दो वर्ष बनारस में व्यतीत किए। यहाँ, संतों के सानिध्य में रहकर उन्होंने अलभ्य साधना प्राप्त की। संतों के बीच उनके गूढ़ और कठिन प्रश्नों ने विद्वानों को भी मौन कर दिया था, परंतु उनके गुरु ने उन्हें यह सिखाया कि किसी को मौन करना उचित नहीं।
रायपुर में लौटने के बाद, डॉ. पाठक ने दो विषयों (ज्योतिष और दर्शन) में एक साथ एम.ए. की पढ़ाई प्रारंभ की। परीक्षाओं के समान दिनांक होने के कारण, उन्होंने ज्योतिष छोड़ दर्शन में आगे बढ़ने का निर्णय लिया। रायपुर में, उन्होंने पंचवर्षीय शिक्षा (P.H.D.) पूरी की और उनकी थीसिस "कालिदास व भवभूति के पदों पर तुलनात्मक अध्ययन" पर आधारित थी। इसके लिए उन्हें राष्ट्रपति से स्वर्णपदक प्राप्त हुआ।
P.H.D. पूरी करने के बाद, उन्हें कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने वहां दो-तीन वर्ष कार्य किया और फिर स्वत: निवृत्त होकर पाण्डित्य करने का निर्णय लिया। उन्होंने पुन: अपने गाँव लौटने का निर्णय लिया।
अपने बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए, वे मुंगेली में निवास करने लगे। मुंगेली में श्रीमद्भागवत की कथा के दौरान, श्री रामभद्राचार्य जी के कटु वचनों को सुनकर उन्होंने रामभद्राचार्य जी को शास्त्रार्थ के लिए आमन्त्रित किया। तीन बार भिन्न-भिन्न स्थानों में रामभद्राचार्य जी की हार ने स्वामी जी को उनके समक्ष नतमस्तक होकर क्षमा मांगने के लिए विवश किया।
सदा शान्तप्रिय और गुरु प्रेम से परिपूर्ण डॉ. हनुमच्छरण पाठक ने जीवन से सन्यास लेकर मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया को तदनुसार 15/12/2023 गोलोक की ओर प्रस्थान करने का निर्णय लिया।
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